Tuesday, February 10, 2015

मेरे दीपक -- प्रियतम का पथ आलोिकत कर!

                                                                       मेरे दीपक

मधुर मधुर मेरे दीपक जल!
युग युग प्रतिदन प्रतिक्षण प्रतिपल;
प्रियतम का पथ आलोिकत कर!

सौरभ फैला प्रतिपल धूप बन;
मृदल मोमु-सा घुल रे मृद तनु;
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल!
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!

सारे शीतल कोमल नूतन,
माँग रहे तुझको ज्वाला-कण;
विश्वशलभ सिर धुन कहता
"मैं हाय न जल पाया तुझमें मिल"!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!

जलते नभ में देख असंख्यक;
स्नेहहीन नित कितने दीपक;
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहन्स-विहन्स मेरे दीपक जल!

द्रुम के अंग हरित कोमलतम,
ज्वाला को करते हृदयंगम;
वसुधा के जड़ अंतर में भी,
बन्दी नहीं है तापों की हलचल!
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!

मेरे निश्वासों से द्रुततर,
सुभग न तू बुझने का भय कर;
मैं अंचल की ओट किये हूँ,
अपनी मृद पलकों से चंचल!
सहज-सहज मेरे दीपक जल!

सीमा ही लघुता का बन्धन है,
अनािद तू मत घड़िय़ाँ गिन;
मैं दृग के अक्षय कोशों से -
तुझमें भरती हूँ आँसूू-जल!
सजल-सजल मेरे दीपक जल!

तम असीम तेरा प्रकाश चिर;
खेलेंगे नव खेल निरन्तर;
तम के अणु-अणु में विद्युत सा -
अमिट चित्र अंकित करता चल!
सरल-सरल मेरे दीपक जल!

तू जल जल होता जितना क्षय;
वह समीप आता छलनामय;
मधुर मिलन में मिट जाना तू -
उसकी उज्जवल स्मित में घुल-मिल!
मदिर-मदिर मेरे दीपक जल!

प्रियतम का पथ आलोिकत कर!

2 comments:

  1. मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! महीयषी डा.महादेवी वर्मा की प्रतिनिधि कविताएँ में सबसे महत्वपूर्ण व सुन्दरतम् भाव वाली अद्भुत कविता है।वैसे महादेवी जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार का सम्मान उनके अनूठे काव्यसंग्रह व रहस्यवाद के सुन्दरतम् रचनाओं मे से एक यामा(1940) के लिए हेतु दिया गया किन्तु इसके अतिरिक्त भी उनकी अनेकोंनेक अद्भुत काव्यरचनाएँ, जैसे नीहार (1929),रश्मि (1932),नीरजा(1933),सांध्यगीत (1935),दीपशिखा (1942) ,प्रथम आयाम (1980) ,अग्निरेखा(1988) ,सप्तपर्णा इत्यादि हैं । इन काव्यसंकलनों में उनकी प्रतिनिधि कविताएँ- जैसे अधिकार , अश्रु यह पानी नहीं है , कौन तुम मेरे हृदय में ,क्या जलने की रीत ,जाग तुझको दूर जाना ,जीवन विरह का जलजात , धूप सा तन दीप सी मैं ,नीर भरी दुख की बदली,पूछता क्यों शेष कितनी रात ? ,मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! ,मैं अनंत पथ में लिखती जो ,मैं नीर भरी दुख की बदली! , रूपसि तेरा घन-केश-पाश , स्वप्न से किसने जगाया ? और हे चिर महान्! इत्यादि हमारे हिन्दी साहित्य की सुन्दरतम् रचनाओं में से एक मानी जाती रही हैं।

    मधुर-मधुर मेरे दीपक जल! तो अद्भुत भावपूर्ण कविता है। इसमें कवियत्री अपने जीवन की तुलना दीपक से करती हैं, और सच कहें तो वे स्वयं को एक दीपक के स्वरूप में ही निरूपित कर लेती हैं।इस दीप रूपी जीव की आत्मा परमात्मा रूपी प्रियतम से मिलने हेतु तडप रही है।इसी लिए आत्मा के इस वियोग की तडपन व जलन की तुलना दीपक की निरंतर जलन व क्षयगति से की गयी है।

    पढ़ी थी यह कविता इंटरमीडिएट में (१९६३ )में ...... शीर्षक देख मन ललचाया ,मैं दौड़ा दौड़ा आया ..बढ़िया प्रस्तुति......

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  2. मेरे दीपक जल !

    जगर-मगर मेरे दीपक जल
    चल छोड़ महल कुटिया में चल
    दीन-दुखी का कुछ तो हर तम
    बुझी ज़िंदगियाँ रोशन कर।

    ईंट-भट्टी में झुलसता बचपन
    शीशे की आंच में सिकता लड़कपन
    आतिश की कालिख में घुलता
    बुझता बचपन, आलोकित कर ।

    देह का बाज़ार दलदल में सना
    जिस्म नुचता मंडियों में बेपनाह
    इस नर्क से मुक्ति पाए जिन्दगी
    नाउम्मीदी के तम में उम्मीद भर ।

    बुढ़ापे की देहरी पर जब उलट जाए
    अपनों का बरताव, रिश्तों का कलश
    स्‍नेह और विश्‍वास से सींचा जिसे उम्र भर
    जीवन संध्या में कोई उजास कर ।
    जगर-मगर मेरे दीपक जल ।

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